लोगों की जेब पर एक और हमला बनेगी सेटेलाइट आधारित टोल प्रणाली?

हालांकि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि एक मई से देश भर में उपग्रह आधारित टोल प्रणाली लागू करने पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन कब इसकी घोषणा हो जाए कहा नहीं जा सकता है। मंत्रालय ने मीडिया में आ रही उन खबरों के बाद यह स्पष्टीकरण दिया है, जिसमें दावा किया गया था कि एक मई 2025 से उपग्रह आधारित टोल प्रणाली शुरू की जाएगी और यह मौजूदा फास्टैग आधारित टोल संग्रह प्रणाली की जगह लेगी।

परिवहन मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि  टोल प्लाजा के माध्यम से वाहनों की निर्बाध, बाधा मुक्त आवाजाही को सक्षम करने और यात्रा के समय को कम करने के लिए चयनित टोल प्लाजा पर स्वचालित नंबर प्लेट पहचान (एएनपीआर)-फास्टैग-आधारित बाधा रहित टोलिंग प्रणालीतैनात की जाएगी। कुछ ऐसे ही दावे मंत्रालय ने फास्टटेग प्रणाली को लागू करते समय भी किये थे लेकिन सभी को फास्टटेग प्रणाली की खामियों और लोगों को उससे होने वाली तकलीफों का पता है। मंत्रालय ने ये भी दावा किया था कि फास्टटेग में अगर किसी भी वाहन को 3 मिनट से ज्यादा टोल पर लगे तो उसे फ्री पास दिया जाएगा जो कि सिर्फ एक जुमला ही निकला। मंत्रालय में ऐसी किसी भी शिकायत्त पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया गया और लोग अपनी जेबें ढीली करते रहे।    

सूत्रों के मुताबिक इस नई सेटेलाइट टोल प्रणाली में  हर 50 किलोमीटर के सफर के बाद लोगों की जेब से टोल कि रकम अपने आप कट जाएगी यानी अब हाइवे परर चलने वालों से एक-एक इंच का हिसाब लिया जाएगा।  बयान के अनुसार, उन्नत टोल प्रणाली में एएनपीआर प्रौद्योगिकी जो वाहनों की नंबर प्लेट पढ़कर उनकी पहचान करेगी तथा मौजूदा फास्टैग प्रणालीजो टोल कटौती के लिए रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) का उपयोग करती है…उसका संयोजन किया जाएगा। इसके तहत, वाहनों से उनके टोल प्लाजा पर रुके बिना उच्च प्रदर्शन वाले एएनपीआर कैमरा और फास्टैग रीडर के माध्यम से उनकी पहचान के आधार पर शुल्क लिया जाएगा। अभी तक ये नहीं स्पष्ट है कि फास्ट टेग रीडर अगर कोई गलती करता है तो उसकी सुनवाई कैसे होगी। फास्ट टेग के अभी तक के अनुभव तो सिर्फ एक धोखा ही साबित हुए हैं। हाँ, ये जरूर होगा कि नियमों का पालन न करने की स्थिति में उल्लंघनकर्ताओं को ई-नोटिस जारी किये जाएंगे, जिनका भुगतान न करने पर फास्टैग निलंबित किया जा सकता है और वाहनसे संबंधित अन्य दंड लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर सरकारी मंशा तो सिर्फ यही दिखती है कि करदाताओं को उन्हीं के  पैसे से दी गई सुविधाओं की पाई पाई कैसे वसूली जाए।  

  • Ajay

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